एक स्वस्थ नागरिक से स्वस्थ परिवार बनता है तथा एक स्वस्थ व संस्कारी परिवार से एक आदर्श समाज की स्थापना होती है। इसलिए समाजोत्थान में योगाभ्यास का सीधा प्रभाव देखा जा सकता है।
योग वास्तव में एक वैज्ञानिक जीवन शैली है जिसका हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष पर गहराई से प्रभाव पड़ता है। योग एक सुव्यवस्थित वैज्ञानिक जीवन शैली के रूप में प्रमाणित हो चुका है। व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए, रोगों के उपचार हेतु, अपनी कार्यक्षमता को बढ़ाने, तनाव प्रबंधन, मनोदैहिक रोगों के उपचार में योग पद्धति को अपनाते हुए देखे जा रहे हैं। योग वर्तमान जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। वास्तव में योग का अनेक क्षेत्रों में विशेष महत्व है, जिसे निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
योग के शरेरिक, मानसिक और अध्यात्मिक फायदों के मध्यनजर रखते हुए सांगटी क्षेत्र के निवासी भूपेंद्र जी का सपना था कि सांगटी क्षेत्र मे स्वस्थ्य अवम् अध्यात्मिक विकास हेतु योग पीठ हो, उन्हीं के इसी सपने को साकार करने के लिए विनय गंधर्भ, भूपेंद्र देव जी ने साथ चलने का सहयोग किया l इसी कड़ी को आगे बढ़ते हुए आज देवभूमि योगपीठ की स्थापना हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय मे आंबेकर पीठ के अध्यक्ष प्रो० विवेकानंद तिवारी जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुई l
आदरणीय प्रो० विवेकानंद तिवारी की अभी हाल ही मे 61 किताबें प्रकाशित हुई है l विश्व के इतिहास में आज तक कभी भी एक साथ किसी विद्वान की 61 किताबे प्रकाशित नहीं हुई हैं. डॉ. तिवारी ने बताया कि इससे पहले उनकी 150 से ज्यादा पुस्तकें और 250 से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. डॉ. तिवारी की ओर से यह कीर्तिमान स्थापित कर हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय को गौरभानवित किया गया है l
डॉ. विवेकानंद तिवारी कई सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं. उन्हें प्राप्त सम्मानों में भारत भारती सम्मान, मालवीय शिक्षा सम्मान, राष्ट्र गौरव सम्मान, महाशक्ति सम्मान और शारदा शताब्दी सम्मान विशेष उल्लेखनीय है. प्रो. तिवारी की पुस्तकों का लोकार्पण शंकराचार्य, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघप्रमुख और कई राज्यों के राज्यपाल कर चुके हैं l
उन्होंने कहा कि योग समय पर परिस्थितियों की इस वक्त की माँग है उन्होंने कहा कि वर्तमान में तेजी से फैल रहे मनोदैहिक रोगों में योगाभ्यास विशेष रूप से कारगर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि योग एक सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक जीवन शैली है जिसे अपनाकर अनेक प्रकार के प्राणघातक रोगों से बचा जा सकता है। योगाभ्यास के अंतर्गत आने वाले षटकर्मों द्वारा शरीर में संचित विषैले पदार्थों का निष्कासन हो जाता है। योगासनों के अभ्यास से शरीर में लचीलापन बढ़ता है एवं शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से होता है। प्राणायाम करने से व्यक्ति के शरीर में प्राण शक्ति की वृद्धि होती है एवं मन में स्थिरता आती है।
आज के इस प्रतिस्पर्धा व विलासिता के युग में अनेक रोगों का जन्म हुआ है जिन पर योगाभ्यास से विशेष लाभ देखने को मिला है। योग चिकित्सा से रोगी बिना किसी दुष्प्रभाव के लाभ प्राप्त कर सकता है।
विभिन्न प्रकार के खेलों में खिलाड़ी अपनी कुशलता, क्षमता व योग्यता आदि बढ़ाने के लिए योग अभ्यास की सहायता लेते हैं। योगाभ्यास से खिलाड़ी के तनाव के स्तर में कमी आती है एवं इससे खिलाड़ियों की एकाग्रता व बुद्धि एवं शारीरिक क्षमता भी बढ़ती है।
बच्चों पर बढ़ते तनाव को योगाभ्यास से कम किया जा सकता है। योगाभ्यास बच्चों को शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत बनाता है। स्कूलों व महाविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा विषय में योग पढ़ाया जा रहा है। योग अभ्यास से विद्यार्थियों की एकाग्रता व स्मृति शक्ति पर भी सकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं। नैतिक जीवन पर भी योगाभ्यास का सकारात्मक प्रभाव है। योग के अंतर्गत आने वाले यम में दूसरों के साथ हमारे व्यवहार व कर्तव्य को सिखाया जाता है, वहीं नियम के अंतर्गत बच्चों को स्वयं के अंदर अनुशासन स्थापित करना सिखाया जा रहा है।
योग विद्या व्यक्ति में पारिवारिक मूल्यों एवं मान्यताओं को भी जागृत करती है। योग के अभ्यास से व्यक्ति में प्रेम, आत्मीयता एवं सदाचार जैसे गुणों का विकास होता है।
सामाजिक गतिविधियां व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक दोनों पक्षों को प्रभावित करती हैं। आज प्रतिस्पर्धा के इस युग में व्यक्ति विशेष पर सामाजिक गतिविधियों का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। परंतु योग में वर्णित कर्म योग, हठ योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, अष्टांग योग आदि साधन समाज को नई रचनात्मक व शांति दायक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
शास्त्रों में वर्णित ‘पहला सुख निरोगी काया बाद में धन और माया’ के आधार पर योग विशेषज्ञों ने पहला धन निरोगी शरीर को माना है। एक स्वस्थ व्यक्ति जहां अपनी आय के साधनों का विकास कर सकता है, वहीं अधिक परिश्रम से व्यक्ति अपनी प्रति व्यक्ति आय को भी बढ़ा सकता है। जबकि दूसरी तरफ शरीर में किसी भी प्रकार का रोग ना होने के कारण व्यक्ति का औषधियों व उपचार पर होने वाला व्यय भी नहीं होता है।
योग का एकमात्र उद्देश्य आत्मा-परमात्मा से मिलन द्वारा समाधि की अवस्था को प्राप्त करना है। इसी अर्थ को जानकर कई साधक योग साधना द्वारा मोक्ष के मार्ग को प्राप्त करते हैं। योग के अंतर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि को साधक चरणबद्ध तरीके से पार करता हुआ केवल को प्राप्त करता है।
प्रो० तिवारी के साथ साथ संlगाटी क्षेत्र के प्रधान जी, मशहुर बासुरी वादक लेख राम गंधर्भ जी विद्यमान रहे और सभी ने योग कि जरूरत क्यों है सभी ने इस पर प्रकाश डाला l आने वाले समय मे यह योग पीठ अच्छे कार्यों के साथ आगे बढे सभी ने अपने आशीष वचन दिये l
देवभूमि योगपीठ की स्थापना मे रहे प्रो ० विवेकानंद तिवारी मुख्य अतिथि
Read Time:8 Minute, 54 Second